shubham123 | Date: Friday, 2011-11-11, 10:33 PM | Message # 1 |
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| ओ३म् उप त्वाग्ने दिवे दिवे दोषावस्तर्धिया वयम् । नमो भरन्त एमसि । ।।साम १४ ।।
प्रभु तुम्हें नमन प्रभु तुम्हें नमन । मेरे प्यारे प्रभु तुम्हें नमन ।।
मैंने इस दुनिया को देखा । देखा जड चेतन का लेखा । देखी प्रभु की सर्वत्र देन, तन मन धन बुद्धि और जीवन ।।
तुम्हें तुम्हारा अर्पण कैसा । अपने पास नहीं कुछ ऐसा । एक नमन ही अपना ठहरा, प्रभु तुम्हें समर्पित यही नमन ।।
दिन रात नित्य सन्ध्या प्रभात । मन में मँडराती यही बात । हर समय नाथ का साथ रहे, यह माथ नमन में रहे मगन ।।
राजेन्द्र आर्य संगरूर 9041342483
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