Arya | Date: Sunday, 2011-11-13, 2:27 PM | Message # 1 |
Private
Group: Users
Messages: 12
Status: Offline
| ओम्!
आज हम सत्यार्थप्रकाश का द्वितीय सन्सकरण पढते है।पहले सन्स्करण मे क्या बदलाव हुए यह हम देखेंगे। पहला संस्करण: इसका लेखन १८७४ मे शुरु हुआ था।स्वामीजी ने इसे अपने हाथो से नही लिखा था।स्वामिजी ने किसी पन्डित को बोल-बोल कर यह लिखवाया था।स्वामीजी की उस समय हिन्दी मे बहुत बढिया पकड नही थी।उन्होने व्याकरण की अनेक अशुद्धियाँ भी कीं।जब इस पहले संस्करण को प्रिन्ट किया गया था तब वह कार्य स्वामीजी की देखरेख में नहीं हुआ था।जिस वजह से प्रिन्ट करने वाले ने उस पुस्तक मे पाखन्ड लिख डाला यथा वेदो मे मूर्तिपूजा,बालविवाह सही है,वेद माँस खाने के लिये प्रेरित करते है,यज्य मे बलि आदि।स्वामीजी ने तुरन्त उस किताब को बन्द करके द्वितीय सन्स्करण प्रिन्ट करवाया।
किन्तु प्रथम संस्करण मे कुच्ह ऐसी महत्वपूर्ण बाते थी जिनको पाखण्डियों ने द्वितीय संस्करण में नहीं आने दिया था।स्वामी दयानन्दजी को इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने में काफी मुश्किलों का समना करना पडा था।
धन्यवाद! विनय आर्य
Message edited by Arya - Sunday, 2011-11-13, 2:33 PM |
|
| |
Aryaveer | Date: Sunday, 2011-11-13, 6:32 PM | Message # 2 |
Private
Group: Administrators
Messages: 16
Status: Offline
| अच्छा तो ये कारण था | तो इसी कारण सत्यार्थ प्रकाश पढ़ते समय मैंने पाया की प्रारंभ में आता है , "पिछले संस्करण में किसी कारण अंतिम दो समुल्लास नहीं छप सके थे |" येही अंतिम दो संस्करण तो इस्लाम और इसाई मत की पोल खोलते हैं | ये भी शायद इसी कारण से नहीं छप सके होंगे | वो तो शुक्र है की ये गलतियाँ शीघ्र पकड में आ गयी और द्वितीय संस्करण समय रहते आ गया |
|
|
| |